दलित बस्‍ती में ही सफाई करने क्‍यों पहुंच जाते हैं नेता?

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Mahatma Gandhi to Priyanka Gandhi
दलित राजनीति पर Mahatma Gandhi से लेकर Priyanka Gandhi तक

बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्‍यवस्‍था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड्रा के झाड़ू लगाने पर यूपी के सीएम योगी यह कभी नहीं कहते कि प्रियंका उसी लायक है। और प्रियंका भी जवाब में कभी नहीं कहती कि इससे दलित और महिलाओं का अपमान हुआ है। मतलब यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ मानते हैं कि झाड़ू लगाना निकृष्‍ट कार्य है और प्रियंका मानती है कि यह काम सिर्फ दलित और महिलाएं ही करती हैं। एक सीएम सोच से समानता के खिलाफ है दूसरी महिला नेत्री व्‍यवहार से भी इसके खिलाफ है।

आजादी के आंदोलन के समय महात्‍मा गांधी भी दलितों की बस्‍ती में सफाई कार्य करने पहुंच जाते थें। तर्क ये दिया जाता है कि समाज में छूआछूत चरम पर था और गांधी जी इसके खिलाफ थे। वे आश्रम में भी अपना सारा काम खुद ही किया करते थें। गांधी जी का यह व्‍यवहार एक पॉलिटिकल सिम्‍बल बन गया और विरासत में कांग्रेस की झोली में आ गया। कालान्‍तर में गांधी पर दूसरी पार्टियां भी हक जताने लगी तो दलित बस्‍ती में श्रमदान का अनुष्‍ठान वे भी करने लगे।

अंग्रेजों की गुलामी से भारत को स्‍वतंत्र हुए 70 वर्ष बीत गए लेकिन दलित बस्‍ती में सफाई का अनुष्‍ठान बदस्‍तूर जारी है। देश में 21वीं सदी में हुए सबसे बड़े आंदोलन जिससे दिल्‍ली में एक नई पार्टी का जन्‍म हुआ, और जब पॉलिटिकल पार्टी कर श्रीगणेश हुआ तो उसने भी झाड़ू को ही अपना सिम्‍बल बनाया और दलित बस्‍ती में ही पारंपरिक अनुष्‍ठान कर सफर की शुरूआत की। यहां बात दिल्‍ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की हो रही है।

arvind kejriwal
झाड़ू लगाते अरविंद केजरीवाल

लोगों को लगा होगा कि दिल्‍ली में एक नई पार्टी का जन्‍म हुआ है तो वह वैचारिक रूप से सामंती सोच और असमानता के खिलाफ होगी लेकिन व्‍यवहार से यह पार्टी भी दूसरी पार्टियों की तरह ही निकली। ये सभी पार्टियां यह मानकर चलती है कि देश में कही गंदगी बची है तो वह वाल्‍मीकि समुदाय की बस्‍ती में होगी, दलित बस्‍ती में ही होगी। कभी यह ख्‍याल नहीं आया होगा कि गंदगी पांडे टोला, मिश्रा टोला में भी संभव है। क्‍योंकि यह मानकर चल रहे हैं कि वो समृद्ध हैं (EWS का कॉन्‍सेप्‍ट) तो स्‍वभाविक रूप से वहां सफाई तो होगी ही। इसलिए किसी नेता या राजनीतिक दल को कभी पांडे टोला या मिश्रा टोला का ख्‍याल नहीं आया।

देश को स्‍वतंत्र हुए बेशक सात दशक बीत गए लेकिन जब सफाई की बात आती है तो सोच में अभी दलित बस्‍ती और महिलाएं ही है। देखा जाए तो राजनीतिक दलों की यात्रा महात्‍मा गांधी से निकलती है और दलित बस्‍ती में जाकर समा जाती है। दलित बस्‍ती जैसे गया का फल्गु नदी हो कोई और सभी राजनीतिक दल अपनी सोच का तर्पण वहां करके मुक्ति पाना चाहते हों।

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