World Sight Day : आंखों की बीमारियों को लेकर नहीं है जागरूकता, सही इलाज नहीं मिलने से स्थाई तौर पर लोग हो जाते हैं अंधे

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भारत में डायबिटीज के 77 मिलियन से ज्यादा रोगी हैं। हाल के दिनों में डायबिटीज से होने वाली और रोकथाम के योग्य दृष्टिहीनता (विजन खोने) के मामलों में भी तेजी देखी जा रही है। डायबिटीज के हर तीन में से एक मरीज को डायबिटिक रेटिनोपैथी है।

World Sight Day : दुनिया भर में 20 लाख से ज्यादा लोग आंखों की समस्याओं से जुझ रहे हैं, अकेले भारत में लाखों लोग ऐसे हैं जो प्रिवेंटेबल विजन लॉस (Preventable Vision Loss) या दृष्टिहीनता के शिकार हैं। एम्स के नेशनल ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इंपेयरमेंट सर्वे इंडिया 2015-19 के अनुसार 50 साल से ऊपर की आयु के 1.99% भारतीय दृष्टिहीनता के शिकार हैं। जबकि संभावित दृष्टिहीनता का शिकार होने वालों की संख्या चिन्ताजनक है और इससे भी बड़ी चिन्ता यह है कि जिन कारणों से यह सब होता है, उनका पता आमतौर पर नहीं किया जाता है।

जागरुकता न होने के कारण दृष्टिहीनता का शिकार होते हैं लोग

इसका नतीजा यह है कि बड़ी संख्या में लोग स्थायी दृष्टिहीनता के शिकार हो जाते हैं। इनमें मोतियाबिन्द जैसे कारण शामिल हैं जो 50 साल या उससे ज्यादा के 66.2% लोगों में दृष्टिहीनता के लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा ग्लूगकोमा (ऑप्टिक नर्व को नुकसान) या रेटिनल बीमारी जैसे उम्र से संबंधित मैकुलर डीजेनरेशन (एएमडी) और डायबिटीक मैकुलर एडिमा (डीएमई) जो व्यक्ति की आंखों के पिछले हिस्से में टिश्यू की परत को प्रभावित करता है। एएमडी और डीएमई दृष्टिहीनता के का मुख्य कारण है। दूसरी ओर, बीमारी का जल्दी पता लग जाए और समय पर उपचार किया जाए तो इसे दूर किया जा सकता है। इसके अलावा, ग्लूपकोमा 60 साल और ज्यादा के लोगों में दृष्टिहीनता के अग्रणी कारणों में एक है।

सही इलाज नहीं मिल पाता

सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, दिल्लीक के चेयरमैन डॉ. महिपाल एस. सचदेव ने कहा, “भारत में अब भी ऐसे एक मिलियन लोग हैं, जो मोतियाबिंद के कारण दृष्टिहीन हैं। हालांकि उनकी आँखों की रोशनी वापस लाई जा सकती थी। इसकी तुलना में 40 साल या इससे ज्या दा उम्र के लोग हैं, जिन्हें ग्लूीकोमा है और जो सही इलाज नहीं मिलने से स्थायी रूप से दृष्टिहीन हो जाएंगे। आज के मिलेनियल्स को बुरी तरह प्रभावित कर रही एक अन्य चिंताजनक बीमारी है डायबिटिक मैक्युिलर एडीमा (डीएमई), जिसकी पूरी तरह से रोकथाम नहीं की जा सकती। लेकिन इसकी शुरूआत को नियमित व्याडयाम, संतुलित आहार और सिस्टेबमैटिक स्थितियों, जैसे डायबिटीज मेलिटस पर सख्तीन से नियंत्रण और उपचार के अनुपालन से रोका जा सकता है।”

आंखों की बीमारियों का उपचार

दृष्टिहीनता रोकने के लिए बीमारी का शुरू में ही पता चलना महत्वपूर्ण है। इसके लक्षणों को पहचानना और स्क्रीनिंग करवाना। उपचार के कई विकल्प उपलब्ध हैं, जिससे बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना और उपलब्ध विकल्पों को समझना और उन पर चर्चा करना इसे रोकने और आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। भारत में जो कुछ विकल्प उपलब्ध हैं, उनमें लेजर फोटो कोएगुलेशन, एंटी-वीईजीएफ (वैस्कुलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर) इंजेक्शन, सर्जरी और कांबिनेशन थेरैपी तथा इनमें लेजर और वीईजीएफ उपचार शामिल है। इन पर विचार करना खासतौर से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि महामारी के दौरान उपचार के साथ आंखों की नियमित देखभाल में कमी आई है और इस कारण प्रभावित मरीजों में स्वास्थ्य से संबंधित जटिलताएं देखने को मिलीं। इनमें युवा आबादी भी है। हालांकि सही जीवनशैली से अपनाकर आंखों की बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।

आंखों की बीमारियों के लक्षण

• धुंधला या अस्पष्ट दिखना
• रंग साफ नहीं दिखना
• कॉन्ट्रा स्ट या रंगों के प्रति संवेदनशीलता कम होना या
• गहरे काले निशान दिखाई देना
• सीधी लाइनें अगर टेढ
• दूर से देखने में असुविधा
• धीरे-धीरे नजर खराब होना
व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए और इन लक्षणों को पहचान कर तत्काल आंखों के डॉक्टर या रेटिना स्पेशलिस्ट के पास जाना चाहिए।

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