Indian Scholar in Cambridge University: संस्कृत को संसार की सबसे पुरानी भाषा मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि संस्कृत के जरिए ही अन्या भाषाओं और शब्दों का उदय हुआ है। लेकिन संस्कृत में 2500 साल पहले की एक ऐसी गुत्थी थी जिसे अब तक कोई विद्वान नहीं सुलझा पाया था। इस गुत्थी को एक भारतीय मूल के छात्र ने सुलझा दिया है। दरअसल, यह भारतीय छात्र कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के सेंट जॉन्स कॉलेज में एशियन एंड मिडल ईस्टर्न स्टडीज फैकल्टी में पीएचडी स्कॉलर है।
Cambridge University के छात्र ने सुलझाई 2500 साल पुरानी पहेली
संस्कृत व्याकरण की यह पहेली पिछले ढाई हजार सालों से संस्कृत के सभी विद्वानों को परेशान कर रही थी, लेकिन इसे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे एक छात्र ने आखिर सुलझा लिया है। आपको बता दें, यह पहेली ईसा से 700 वर्ष पूर्व भाषाओं के जनक कहे जाने वाले भारतीय मनीषी पाणिनि के नियम से बनाई गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाणिनि ने इस पहले के जरिए एक मेटारूल दिया था। जिसकी विद्वानों द्वारा इस रूप में व्याख्या की जाती है कि समान शक्ति के दो नियमों के बीच संघर्ष की स्थिति में, बाद में आने वाला नियम मान्य होता है। हालांकि, व्याकरण की दृष्टि से यह कई बार गलत परिणाम देता है।
ऋषि ने पहेली की व्याख्या को किया खारीज
ऋषि राजपोपत ने मेटारूल की इस पारंपरिक व्याख्या को इस तर्क के साथ खारिज कर दिया कि पाणिनि का मतलब था कि क्रमशः एक शब्द के बाएं और दाएं पक्षों पर लागू होने वाले नियमों के बीच। पाणिनि चाहते थे कि हम दाएं पक्ष पर लागू होने वाले नियम का चयन करें। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि पाणिनि के व्याकरण ने लगभग बिना किसी अपवाद के सही शब्दों का निर्माण किया। आपको बता दें, ऋषि ने इसे अपने शोध पत्र- “इन पाणिनी, वी ट्रस्ट डिस्कवरिंग द एल्गोरिदम फार रूल कान्फ्लिक्ट रिजोल्यूशन इन द अष्टाध्यायी” में सुलझाया है।
2 साल के परीश्रम ने दिखाया रंग
मीडिया से बात करते हुए ऋषि राजपोपत ने बताया कि इस ढाई हजार साल पुरानी पहेली को सुलझाने में उन्हें काफी समय लगा है। दरअसल, इसके लिए ऋषि ने 9 महीने तक रिसर्च किया था। इसके बाद उन्हें इस गुत्थी को सुलझाने का कोई जरिया नजर नहीं आ रहा था। इसके बाद उन्होंने हार मान ली और सभी किताबें बंद करके रख दी। इसके बाद वो अपनी गर्मी की छुट्टियां मनाने चले गए थे। फिर कुछ समय बाद इन्होंने अधूरे मन से एक बार फिर इसको सुलझाने का काम शुरू कर दिया। जैसे-जैसे उन्होंने किताबों के पन्ने पलटे उनकी पहेली सुलझने लगी। हालांकि, उन्होंने इसके लिए 2 साल का समय लग गया था।
संबंधित खबरें:
परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल ‘अग्नि-5’ का सफलतापूर्वक परीक्षण, बीजिंग तक को बना सकती है निशाना